बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
इंसान की ख्वाहिशो की कोई इन्तेहा नहीं
इंसान की ख्वाहिशो की कोई इन्तेहा नहीं
दो गज ज़मीन चाहिए दो गज कफ़न के बाद
रोज़ सुबह उठते ही मन में नई ख्वाहिश जागने लगती हे काश ऐसा होता काश वैसा होता सब कुछ तो हे पास मगर फिर भी कोई तो कमी हे काश मेरा घर इतना बड़ा होता की साड़ी कायनात उसमे समा जाती काश मेरे पास इतना पैसा होता की हम चाँद तारे भी खरीद पते पर कहते है न
हजारो ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमा मगर फिर भी कम निकले
कितना भी मिलता हे कम ही रहता हे कभी सुकून की दो सांस नसीब नहीं होती हम भागते रहते है हमेशा परछाइयों के पीछे और अपने आप को भी खो देते हे जब होश आता हे तो हातह खली होते हे और दिल परेशा ।
अपनी पहचान बनाते बनाते हम खुद खो जाते है एक ऐसे अँधेरे में जहा कोई रौशनी की किरण नज़र नहीं आती
पर फिर भी हमारी ख्वाहिशे ख़तम नहीं होती । हमेशा बेहतर और बेहतर पाने की ख्वाहिश हमे अपनों से दूर कर देती है हम भूल जाते है की हम क्यों और किसकी ख्वाहिशो के पीछे भाग रहे थे । इसलिए तो आँखे बंद कर ख्वाहिशो के पीछे भागने की वजाय जाने की आखिर हम क्या चाहते है और हमारी ज़रूरत कितनी है
मालिक इतना दीजिये जा में कुटुम समाये
में भी भूका न रहू साधू न भूका जाये
दो गज ज़मीन चाहिए दो गज कफ़न के बाद
रोज़ सुबह उठते ही मन में नई ख्वाहिश जागने लगती हे काश ऐसा होता काश वैसा होता सब कुछ तो हे पास मगर फिर भी कोई तो कमी हे काश मेरा घर इतना बड़ा होता की साड़ी कायनात उसमे समा जाती काश मेरे पास इतना पैसा होता की हम चाँद तारे भी खरीद पते पर कहते है न
हजारो ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमा मगर फिर भी कम निकले
कितना भी मिलता हे कम ही रहता हे कभी सुकून की दो सांस नसीब नहीं होती हम भागते रहते है हमेशा परछाइयों के पीछे और अपने आप को भी खो देते हे जब होश आता हे तो हातह खली होते हे और दिल परेशा ।
अपनी पहचान बनाते बनाते हम खुद खो जाते है एक ऐसे अँधेरे में जहा कोई रौशनी की किरण नज़र नहीं आती
पर फिर भी हमारी ख्वाहिशे ख़तम नहीं होती । हमेशा बेहतर और बेहतर पाने की ख्वाहिश हमे अपनों से दूर कर देती है हम भूल जाते है की हम क्यों और किसकी ख्वाहिशो के पीछे भाग रहे थे । इसलिए तो आँखे बंद कर ख्वाहिशो के पीछे भागने की वजाय जाने की आखिर हम क्या चाहते है और हमारी ज़रूरत कितनी है
मालिक इतना दीजिये जा में कुटुम समाये
में भी भूका न रहू साधू न भूका जाये
बुधवार, 29 सितंबर 2010
नज़रे बदल गई या मोसम बदल गए
आजकल मोसम कुछ बदला बदला सा लग रहा हे गर्मी ख़तम हो रही हे, पर आजकल फिज़ाओ में अजीब सी घुटन फ़ैल रही हे सब के मन में डरहै कल पता नहीं क्या हो जाये कोई नहीं चाहता की किसी भी तरह से देश की शांति भंग हो फिर क्यों मोसम इतना नीरस हे आखिर अचानक क्या हो गया की सदा एक दुसरे का हाथ पकड़ कर चलने वाले लोग भी एक दुसरे को देखकर नज़रे फेर रहे है । अचानक धर्म दोस्ती से बड़ा कैसे हो गया । क्या इतने सालो की वो मेल मुलाक़ात दिखावा थी क्या सरे सुख दुःख जो साथ में बांटे वो दिखावा था । वो चाय की दूकान में एक ही कप से चाय पीना वो साथ में घूमना वो बाते सब दिखावा था वो दिवाली पे साथ पठाके चलाना और यिद पे सिवैये खाने के लिए जाना सब झूठ था । सब दिखावा था । एक छोटी सी सी ठसक से टूट गई वो मज़बूत दीवार जो इतने सालो तक मिलकर उठाई थी और सब अपने बेगाने हो गए। दोस्त दोस्त न रहकर हिन्दू मुसलमान हो गए । देश में गरीबी हे लोगो के पास पहनने को कपडे नहीं शिक्षा नहीं आतंकवाद जैसे कितने ज्वलंत मुद्दे हे इतनी समस्याओ के बीच ये नई उलझन कहा से आ गई । अपना घर तो बना नहीं पाते इस कलयुग में और हमारे धर्म के ठेकेदार हमे भगवान् के घर बनाने को उकसा रहे हे । अगर अस्पताल बने तो कम से कम वह गरीबो का इलाज हो पर इस तरह के काम में हम कभी आगे नहीं आयेंगे कभी किसी स्कूल या अनाथालय को दान देना हो तो जेब में पैसे नहीं होते पर आस्था के नाम पर हज़ारो लुटा देंगे। अरे भगवान् या खुदा भी ऐसे घर में कैसे रहना
पसंद करेंगे जिसकी नीव उसके बन्दों की लाश पे राखी गई हो ।
ज़िन्दगी एकबार मिलती हे जैसे आपकी जान कीमती हे सब की जान कीमती हे कोई भी धर्म हिंसा का पाठ नहीं पदाते फिर क्यों हम कुछ मतलबी लोगो की बातो में आकर अपने आपको इस कभी न बुझने वाली आग में झोंक देते हे ।
इस संसार को शान्ति का पैगाम देने के लिए सबका सहयोग आवश्यक हे ।
पसंद करेंगे जिसकी नीव उसके बन्दों की लाश पे राखी गई हो ।
ज़िन्दगी एकबार मिलती हे जैसे आपकी जान कीमती हे सब की जान कीमती हे कोई भी धर्म हिंसा का पाठ नहीं पदाते फिर क्यों हम कुछ मतलबी लोगो की बातो में आकर अपने आपको इस कभी न बुझने वाली आग में झोंक देते हे ।
इस संसार को शान्ति का पैगाम देने के लिए सबका सहयोग आवश्यक हे ।
नज़रे बदल गई या मोसम बदल gaye
Dream is not what you see in sleep . It is something that does not let you sleep.
गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
न्याय के लिए अन्याय की जंग
एक बहुत पुरानी कहावत है जब जब धरती पर पाप बढता है तो उसका दमन करने के लिए कोई अवतार जन्म लेता है जो पापियों का नाश करता है और मज़लूमो को उनका हक दिलाता है। पर ये कलयुग है यहाँ पाप तो लगातार बढ रहा है पर किसी अवतार का कोई अता पता नहीं शायद ये भी कोई दादी की पारी कथा ही होगी वरना भगवान् इतना निर्दयी कैसे हो सकता है की ज़ुल्म का घडा सर से ऊपर जाकर बहे और कोई अवतार ना आये । हाँ कुछ लोग ज़रूर खुद को हीरो समझ कर खुद ही ज़ुल्म का नाश करने निकल पड़ते है पर ज़ुल्म तो वही का वही रहता है पर उनकी इस महानता की सज़ा उन लोगो को मिलती है जो पहले से ही सज़ा भुगत रहे है इस देश का एक आम नागरिक होने की । ऐसे ही कुछ विकृत मानसिकता के लोग है जो खुद को देश का हितेषी मानते है और नक्सल वाद को जन्म देते है। आखिर ये क्या करना चाहते है कोण सा समाज सुधारना चाहते है क्या बदलाव लाना चाहते है । ये सच हे की नक्सलवाद का जन्म आक्रोश की आंधी से ही हुआ है जब पाप बढता है तो आक्रोश जागता है और जब आक्रोश जागता है तो उसका हल धुंडने का समय किसी के पास नही होता उस वक़्त सही गलत समझ नहीं आता । लेकिन जब आप स्वयं ही अपना घर उजाड़ने पर टूल जाए तो ये कोनसा सुधार है । लोगो की जान लेने का हक तो किसी को नहीं है फिर आप कोन होते है किसी को सजा देने वाले । अगर सिस्टम से परेशानी है तो उसको बदलने की कोशिश कीजिये नाकि उसको समाप्त करने की परआज किस के पास वक़्त हा ये सब सोचने का हम परेशान है तो उठाओ बन्दूक और मार दो सामने वाले को ट्रेन रोक दो बम चलाओ जब तक धमाका नहीं होगा तो कोई नहीं सुनेगा यही मानसिकता हो गई हे लोगो की पर कभी कोई नहीं सोचता की उस धमाके में जो लोग मरे उनके परिवार वालोने आप का क्या बिगाड़ा था वो तो खुद आप में से ही एक थे अरे जिन्होंने ये सिस्टम बनाया आप तो उनको राजनीती करने के लिए और मौके ही दे रहे है जब कभी कोई ब्लास्ट होता है खूब भाषण होते है अगले चुनाव तक सभी राजनीतिक दल उस पर अपनी दाल रोटी सकते है। फिर सब ख़तम । सब यहाँ का यहाँ क्या परिवर्तन आया कुछ नहीं ना सिस्टम में ना आपमें परिवर्तन तो सिर्फ उस घर में आया होगा जिसने उस जगह अपनी जान दी चाहे वो पुलिस वाले हो या आम आदमी या नक्सली । सब कहते है सरकार कोई कदम नहीं उठाती जब जो पार्टी सत्ता में होती है उस पर दोष धर दिया जाता है की वो असफल है इस्तीफा दो आदि पर इस समस्या का समाधान इस्तीफे मांगने और सता बदलने से होना होता तो कबका हो चूका होता अरे पहले समस्या को समझिये तो फिर उसको जड़ से मिटाने की कोशिश कीजिये । समाज को शिक्षित बनाइये की वो अपना भला बुरा खुद सोच सके । उन्हें ज़ुल्म और अत्याचार और अपने हक की लड़ाई में फर्क पता तो चले क्यूँकी उन्हें तो ये भी नहीं पता की जो वो कर रहे है वो उनके हक की नहीं जुलम की लड़ाई है। सबसे पहले खुद को बदलो फिर समाज को बदलो क्यूंकि हम समाज से नहीं समाज हमसे बनता है । यही इस समस्या का सही निदान हो सकता है।
मंगलवार, 23 मार्च 2010
एक कड़वा सच .......... ग्लोबल वार्मिंग
उफ़ ... ये गरमी , आग उगलता सूरज रोज़ बढता पारा और मुश्किल होता जीना घर से बाहर जाए तो जाए कैसे । अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात थी जब कडकडाती ठण्ड ने हमे घर के अन्दर बंद होने पर मजबूर कर दिया था । हम रोज़ दुआए मांगते की कब ये सर्दी ख़तम होगी पर किसको अंदाजा था की सर्दी के वीभत्स रूप को देखने के बाद हमे गरमी का भी विकराल रूप देखना पडेगा। आज कल मौसम भी सचिन तेंदुलकर की तरह रिकॉर्ड तोड़ने में लगा है। कही १०० साल की सर्दी का रिकॉर्ड टूटा तो कही गरमी का। लगता है मनुष्य के पापो का घड़ा भर चूका है। और अब प्रकर्ति भी उसे सज़ा देने पर आमादा हो गई है। आखिर इतने वर्षो तक मनुष्य ने भी तो उसके साथ अन्याय किया है उसी का परिणाम है ये ग्लोबल वार्मिंग । ग्लोबल वार्मिंग का मुख्या कारण है ग्रीन हाऊस गैसे
जो की अवरक्त किरणों के रूप में प्रथ्वी के तापमान को बढाने के लिए उत्तरदायी है। इसका मुख्य अवयव है कार्बोन डाई ओक्सईड, मीथेन , नाइट्रस ओक्सईड , जल भाप आदि है। इन गैसों के सबसे बड़े निर्माताओं में ताप विद्युत संयंत्र है , जो जीवाश्म ईंधन को जलाने और बड़ी मात्रा में इन गैसों का उत्पादन कर रहे हैं. इन ग्रीन हाउस गैसों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत सड़क पर चलने वाहन और अन्य उद्योगों से हैं। इस बड़ते तापमान का ही नतीजा है की ध्रुवो पर बर्फ पिघल रहा है अगर यही हाल रहा तो डर है की किनारों पर स्तिथ देश जल्दी ही सागर में समा जायेंगे। ग्लोबल वार्मिंग ने जानवरों के साम्राज्य को भी प्रवाभित करना प्रारंभ कर दिया है कई प्रजातीय जो इस बदलते मौसम की मार सह सकने में अक्षम है लुप्त होती जा रही है। इस ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रणाम हमे मौसम चक्र के बिगड़े रूप में नज़र आ रहा है अब गर्मिया सर्दियों से अधिक लम्बी होती है ।बारिश का कोई समय पक्का नहीं है। बारिश में सूखा पड़ता है और सर्दी या गरमी के मौसम में बारिश तबाही मचा देती है। बड़ते तापमा ने कई नई बीमारियों को भी जन्म दे दिया है। इसका कारण यह है की बेक्टेरिया सर्दी की अपेक्षा गर्मी में तीव्रता से बड़ते है । आज किसान हमेशा डरे रहते है की पता नहीं कब इस बदलते मौसम की मार से उनकी फसल बर्बाद हो जाए। इस तरह कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो इस ग्लोबल वार्मिंग से परेशान न हो । पर अब सोचने और बाते करने या चिंता जताने से काम नहीं चलेगा क्यूँकी अगर वक़्त रहते इस समस्या को सम्भाला नहीं गया तो एक क़यामत आने से कोई नहीं रोक पायेगा और उस क़यामत के ज़िम्मेदार हम स्वयं ही होंगे ।
जो की अवरक्त किरणों के रूप में प्रथ्वी के तापमान को बढाने के लिए उत्तरदायी है। इसका मुख्य अवयव है कार्बोन डाई ओक्सईड, मीथेन , नाइट्रस ओक्सईड , जल भाप आदि है। इन गैसों के सबसे बड़े निर्माताओं में ताप विद्युत संयंत्र है , जो जीवाश्म ईंधन को जलाने और बड़ी मात्रा में इन गैसों का उत्पादन कर रहे हैं. इन ग्रीन हाउस गैसों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत सड़क पर चलने वाहन और अन्य उद्योगों से हैं। इस बड़ते तापमान का ही नतीजा है की ध्रुवो पर बर्फ पिघल रहा है अगर यही हाल रहा तो डर है की किनारों पर स्तिथ देश जल्दी ही सागर में समा जायेंगे। ग्लोबल वार्मिंग ने जानवरों के साम्राज्य को भी प्रवाभित करना प्रारंभ कर दिया है कई प्रजातीय जो इस बदलते मौसम की मार सह सकने में अक्षम है लुप्त होती जा रही है। इस ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रणाम हमे मौसम चक्र के बिगड़े रूप में नज़र आ रहा है अब गर्मिया सर्दियों से अधिक लम्बी होती है ।बारिश का कोई समय पक्का नहीं है। बारिश में सूखा पड़ता है और सर्दी या गरमी के मौसम में बारिश तबाही मचा देती है। बड़ते तापमा ने कई नई बीमारियों को भी जन्म दे दिया है। इसका कारण यह है की बेक्टेरिया सर्दी की अपेक्षा गर्मी में तीव्रता से बड़ते है । आज किसान हमेशा डरे रहते है की पता नहीं कब इस बदलते मौसम की मार से उनकी फसल बर्बाद हो जाए। इस तरह कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो इस ग्लोबल वार्मिंग से परेशान न हो । पर अब सोचने और बाते करने या चिंता जताने से काम नहीं चलेगा क्यूँकी अगर वक़्त रहते इस समस्या को सम्भाला नहीं गया तो एक क़यामत आने से कोई नहीं रोक पायेगा और उस क़यामत के ज़िम्मेदार हम स्वयं ही होंगे ।
रविवार, 21 मार्च 2010
महिला आरक्षण लोलीपोप या बैसाखी
सभी महिलाए आजकल बड़ी खुश नज़र आती है की बर्षो से चल रही जंग आखिर कार सफल हो गई और देश की आधी आबादी अब संसद में भी बराबरी से नज़र आएगी। सभी पार्टियों ने खुल के इसका स्वागत भी किया । चलिए आखिरकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिलाओ कोबराबरी का हक दे ही दिया ये दुनिया के लिए एक मिसाल है। पर कही ये आरक्षण सिर्फ दूर के ढोल सुहावने की तरह न हो जाए । क्यूंकि इस पुरुष प्रधान समाज को येबात कटाई गवारा नहीं होगी की किचेन में रोटी बनाने वाले हाथ संसद बड़ी बड़ी बहस करते नज़र आये । वैसे भी माना जाता रहा है की महिलाए केवल घर को ही सही ढंग से चला सकती है राजनीती उनके बस की बात नहीं है ।इसका उदाहरण तो हम आजकी राजनेतिक पार्टियों में देख ही सकते है आज कितनी पार्टियों में महिलाए किसी मुख्य पद पर है। सिर्फ कुछ उदहारण छोड़ दे तो सभी महिलाए उस पार्टी के लिए शोपीस की तरह नज़र आती है। इस माहोल में ये बिल पास होना इस बात का सबूत है की अब पुरुष भी महिलाओ का अस्तित्व नकार नहीं सकते। पर मुझे चिंता इस बात की है की कहीं हर बार की तरह ये आरक्षण भी बस लोलीपोप की तरह ना बन जाए । मतलब कही ये ना हो की चुनाव तो लड़े श्रीमती जी और निर्णय ले श्रीमान जी।जैसा अभी तक होता आया है, आज कई गाँव में महिला सरपंच तो है पर उनका काम बस राष्टीय पर्वो पे झंडा फेह्राने और कागजों पे दस्तखत करने से ज्यादा नहीं है। सारा कामकाज उनके पुरुष पालक ही करते है। अगर अभी भी यही हुआ तो ये आरक्षण महिलाओं की हालत सुधारने के बदले और बेकार कर देगा क्यूंकि तब उन्हें ना चाहते हुए भी ज़बरदस्ती राजनीति
के दलदल में धकेल दिया जायेगा। समाज का एक तबका ऐसा भी है जिसे यह लगताअ है की ये आरक्षण बैसाखियों की तरह है क्यूंकि आज की महिलाए किसी से कम नहीं उन्हें इस तरह के प्रलोभनों की ज़रूरत नहीं । ये वो तबका हे जो शिक्षित है और जानता है की उन्हें क्या करना है। क्यूँकी राजनीति में आने से पहले ज़रुरी है समाज का ज्ञान । अपना सही गलत समझने की शक्ती। अगर महिलाए को ज्ञान नहीं होगा तो ये तो निश्चित है की उन्हें दुसरे के कहे अनुसार ही चलना होगा और अगर उनमे क्षमता है तो फिर उन्हें आगे बदने से कोई नहीं रोक सकता। कुल मिला कर हम कह सकते है की महिला सशतीकरण के लिए जो कार्य सरकार कर रही है वो सराहनीय है अब बारी हमारी है की महिलाओं को जागरूक बनाया जाये ताकि वो अपने अधिकारों को जाने और कोई भी उनका फायदा ना उठा पाए।
के दलदल में धकेल दिया जायेगा। समाज का एक तबका ऐसा भी है जिसे यह लगताअ है की ये आरक्षण बैसाखियों की तरह है क्यूंकि आज की महिलाए किसी से कम नहीं उन्हें इस तरह के प्रलोभनों की ज़रूरत नहीं । ये वो तबका हे जो शिक्षित है और जानता है की उन्हें क्या करना है। क्यूँकी राजनीति में आने से पहले ज़रुरी है समाज का ज्ञान । अपना सही गलत समझने की शक्ती। अगर महिलाए को ज्ञान नहीं होगा तो ये तो निश्चित है की उन्हें दुसरे के कहे अनुसार ही चलना होगा और अगर उनमे क्षमता है तो फिर उन्हें आगे बदने से कोई नहीं रोक सकता। कुल मिला कर हम कह सकते है की महिला सशतीकरण के लिए जो कार्य सरकार कर रही है वो सराहनीय है अब बारी हमारी है की महिलाओं को जागरूक बनाया जाये ताकि वो अपने अधिकारों को जाने और कोई भी उनका फायदा ना उठा पाए।
गुरुवार, 18 मार्च 2010
चंदेरी एक अहसास
मेरी पहली कोशिश चंदेरी एक छोटी सी दुनिया को आप सभी ने काफी सराहा इस के लिए शुक्रिया। आप सभी जानना चाहते है की चंदेरी कहाँ है ये मध्य प्रदेश और उतार प्रदेश के बोर्डर पर स्थित एक छोटा सा शहर है। अगर इस बारे में ज्यादा जानकारी चाहते है तो आप हमारी वेबसाइट www.chanderi.net
पर देख सकते है। वैसे यहाँ आकर ही यहाँ की संस्कृत और सभ्यता को समझा जा सकता है । में आप सभी को अपने शहर आने का निमंत्रण देती हूँ । यहाँ आने का सही वक़्त अक्टूबर से लेकर मार्च तक रहता है । वैसे बारिश में भी ये जगह अद्भुत खुबसूरत नज़र आती है । पहाडो से गिरते झरने और उनकी कल कल करती आवाज़ मन मोह लेती है। चारो तरफ फैली हरियाली आपको अपनी और खींच लेती है। यहाँ आकर आप हिदुस्तान को करीब से जान सकते है क्यूंकि यहाँ कठिन हालत में भी आपको मुस्कुराते चेहरे मिल जायेंगे । सारा दिन बुनाई का काम करते है और रात को गली के नुक्कड़ पर बैठ कर बड़े बड़े मसलो को हंसी में उड़ाते लोग मिल जायेंगे। ऐसे लोग जिनकी बनाई गई साड़ियो की कीमत उनकी ज़िन्दगी भर की कमाई से भी ज्यादा होती है। उनको तो पता भी नहीं होता की उनकी बनाई गई साड़ी की कीमत उस शो रूम में जाकर क्या होगी जिसके अन्दर जाने की वो हिम्मत भी नहीं कर सकते । वैसे हमारे शहर में सभी के पास काम है । सभी के पास कम से काएक हुनर तो है जो उन्हें उम्मीद दिलाता है की उनके बच्चे कभी भूके नहीं सोयेंगे यही सबसे बड़ी वजह है की वो ज्यादा की ख्वाहिश नहीं करते वो सुखी है की उनके बच्चो को दो वक़्त की रोटी तो नसीब हो रही है। पर क्या सिर्फ यही है ज़िन्दगी जीने का सही ढंग । पर यहाँ के सेठ लोग जानते है की जिस दिन इन मजदूरों को उनके अधिकारों का ज्ञान हो गया उस दिन उनकी दूकान बंद हो जायेगी। वो कभी नहीं चाहते की ये लोग आगे बड़े। पर ये प्रयास हम सभी को करना चाहिए । हम सब की छोटी से छोटी कोशिश भी बेकार नहीं जायेगी। आज के बाद जब कभी भी चंदेरी सिल्क की साड़ी देखे तो एक बार उस कारीगर के बारे में ज़रूर सोचे जिसने दिन रात खुद की जला कर उस साड़ी को बनाया होगा। बाक़ी बाते अगली बार अभी बहुत कुछ है बताने के लिए.....................
पर देख सकते है। वैसे यहाँ आकर ही यहाँ की संस्कृत और सभ्यता को समझा जा सकता है । में आप सभी को अपने शहर आने का निमंत्रण देती हूँ । यहाँ आने का सही वक़्त अक्टूबर से लेकर मार्च तक रहता है । वैसे बारिश में भी ये जगह अद्भुत खुबसूरत नज़र आती है । पहाडो से गिरते झरने और उनकी कल कल करती आवाज़ मन मोह लेती है। चारो तरफ फैली हरियाली आपको अपनी और खींच लेती है। यहाँ आकर आप हिदुस्तान को करीब से जान सकते है क्यूंकि यहाँ कठिन हालत में भी आपको मुस्कुराते चेहरे मिल जायेंगे । सारा दिन बुनाई का काम करते है और रात को गली के नुक्कड़ पर बैठ कर बड़े बड़े मसलो को हंसी में उड़ाते लोग मिल जायेंगे। ऐसे लोग जिनकी बनाई गई साड़ियो की कीमत उनकी ज़िन्दगी भर की कमाई से भी ज्यादा होती है। उनको तो पता भी नहीं होता की उनकी बनाई गई साड़ी की कीमत उस शो रूम में जाकर क्या होगी जिसके अन्दर जाने की वो हिम्मत भी नहीं कर सकते । वैसे हमारे शहर में सभी के पास काम है । सभी के पास कम से काएक हुनर तो है जो उन्हें उम्मीद दिलाता है की उनके बच्चे कभी भूके नहीं सोयेंगे यही सबसे बड़ी वजह है की वो ज्यादा की ख्वाहिश नहीं करते वो सुखी है की उनके बच्चो को दो वक़्त की रोटी तो नसीब हो रही है। पर क्या सिर्फ यही है ज़िन्दगी जीने का सही ढंग । पर यहाँ के सेठ लोग जानते है की जिस दिन इन मजदूरों को उनके अधिकारों का ज्ञान हो गया उस दिन उनकी दूकान बंद हो जायेगी। वो कभी नहीं चाहते की ये लोग आगे बड़े। पर ये प्रयास हम सभी को करना चाहिए । हम सब की छोटी से छोटी कोशिश भी बेकार नहीं जायेगी। आज के बाद जब कभी भी चंदेरी सिल्क की साड़ी देखे तो एक बार उस कारीगर के बारे में ज़रूर सोचे जिसने दिन रात खुद की जला कर उस साड़ी को बनाया होगा। बाक़ी बाते अगली बार अभी बहुत कुछ है बताने के लिए.....................
बुधवार, 17 मार्च 2010
कुछ अनकही सी बाते
आज फिर एक नया दिन शुरू हुआ । हर नए दिन के साथ नयी शुरुआत होती है नई उमीद नई मंजिल । हर बार अपनी पुरानी यादो को पीछे छोड़ हम आगे बड जाते है। ज़िन्दगी यूँही चलती रहती है । हम दिनभर में जाने क्या क्या बाते करते है पर कभी नहीं सोचते की इन बातो से किसी को क्या फर्क पड़ता है । जाने अनजाने कही गई हमारी बाते किसी को कितना प्रभावित कर सकती है। कई बार अनजाने ही हमारी बाते किसी को नई प्रेरणा दे सकती है तो कभी किसी का दिल दुखा सकती है । मुझे आज भी याद है जब मै १२वी क्लास मै थी तब मेरे सर ने मज़ाक मै कहा था की मै कभी भी मेरी एक अन्य दोस्त से ज्यादा नंबर नहीं ला सकती उनकी वो बात मेरे दिल को गहरे तक छु गई मैंने मन मै ये संकल्प लिया की चाहे कुछ हो जाये मुझे सर को प्रूफ करके दिखाना है। मैंने दिन रात महनत की जिसका परिणाम भी मुझे मिला मुझे अपनी उस दोस्त से कही ज्यादा नंबर मिले । आज भी मै सर को धन्यवाद कहती हूँ की सिर्फ उनकी कही वो कुछ बातो ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी । पर कई बार यही बाते आपको इतना दुखी कर देती है की आप रोने पर मजबूर हो जाते है ।और चाहकर भी उस इंसान के बारे मै अच्छा नहीं सोच पाते । इसलिए जब भी बोले तो सोच समझ कर ही बोले क्यूंकि जुबा से कही गई बात दिल मै उतर जाती है।
मंगलवार, 16 मार्च 2010
चंदेरी एक छोटी सी दुनिया
मै आज अपने छोटे से शहर चंदेरी के बारे मै बात करना चाहती हूँ जाने क्यों आज मन हुआ की इस शहर के बारे मै कुछ लिखा जाए । वैसे तो काफी लोग इस पर किताबे लिख चुके है पर मै कोई इतिहास या भूगोल की बात नहीं करना चाहती । मुझे तो बस इस शहर को लेकर मेरे अनुभव लिखने का मन कर रहा है। वैसे तो काफी खुबसूरत शहर है हमारा चारो तरफ पहाड़ो से घिरा हुआ दूर तक फैली हरियाली । पुरानी इमारते जो आज भी अपनी दास्ताँ सुना रही है। छोटा सा बाज़ार जहाँ बस रोज़मर्रा की ज़रुरतो का सामान मिल जाता है। यहाँ के लोग जो साड़ी बुनकर या छोटा मोटा काम करके अपनी रोज़ी रोटी चलाते है। छोटे लोग है और उनकी ज़रूरते भी सीमित है बस दो वक़्त की रोटी और सर पर एक छत और सुकून भरी ज़िन्दगी । यहाँ की सबसे ख़ास बात है यहाँ की बनी हुई साडीया जो पूरी तरह हाथ से बनाई जाती है और देखने में बहुत खुबसूरत होती है । ये साडीयाख़ास तौर पे सिल्क से बनाई जाती है । पहले डिजाईन तैयार किया जाता है फिर उसको बुना जाता है एक एक तार पर उस डिजाईन को पिरोया जाता है कभी तो एक साडी एक दिन में बन जाती है तो कभी महीनो लग जाते है किस साडी को बनने में कितना समय लगेगा ये उसकी डिजाईन पर निर्भर करता है। पहले तो ये काम पूरीतरह हाथ से ही होता था पर आज नई तकनीक की मदद से यह काम कंप्यूटर के द्वारा हो जाता है और नई नई डिजाईन आसानी से बन जाती है । साड़ी की कीमत उसके डिजाईन पर निर्भर करती है । जितनी खुबसूरत डिजाईन उतनी ज्यादा कीमत । आज इस मशीनी युग में भी इस साड़ी ने अपनी अलग पहचान बना के रखी है। साड़ी के बाद जो यहाँ की सबसे ख़ास बात है वो है यहाँ की खुबसूरत इमारते। किला कोठी हो या बादल महल कटी घाटी या फिर सिंग पुर सभी अपने आप में अद्भुत है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को बरबस ही अपनी और खींच लेते है। आज शाशन की मदद से इन सभी इमारतो का रखरखाब किया जा रहा है तथा सभी इमारतो की खूबसूरती निखारने के प्रयास किये जा रहे है ताकि यहाँ आने वाले पर्यटकों की तादाद में इजाफा हो जिससे यहाँ के लोगो को रोज़गार के और अवसर भी प्राप्त हो। यहाँ की जनता वैसे तो काफी सुखी दोखाई देती है क्यूंकि वो हंसी में अपने गम छुपाना जानती है पर फिर भी यहाँ कई समस्याए है सबसे बदु समस्या तो अज्ञानता है यहाँ सभी लोग मजदूरी करके अपना पेट पालते है ऐसे में पदाई लिखाई का समय निकालना मतलब अपने पैर पे कुल्हाड़ी मारना सा लगता है। पर अब कई संस्थाए इस विषय पर कार्य कर रही है और यहाँ के लोगो को ज्ञान के रास्ते पे ले के जा रही है।
ख्वाब वो नहीं जो नींद में आते हा ख्वाब वो हे जो आपकी नींद उड़ा देते है।
ख्वाब तो सभी देखते है कुछ ख्वाब सच होते है और कुछ भूल जाते है । अगर आप सच्चे दिल से कोई चीज़ की ख्वाहिश करो तो कहते है की वो चीज़ खुद आप तक पहुचने के रास्ते तलाश कर लेती है, पर कई बार हम खुद नहीं समझ पाते की सच क्या है और झूट क्या हम बस ख्वाबो की झूटी दुनिया में ही जीते रहते है जहाँ हर चीज़ खुबसूरत होती है परन्तु ज़िन्दगी कोई ख्वाब नहीं । अक्सर जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो हम सोचते है की ऐसा हमारे साथ ही क्यों हुआ पर जब हम खुश होते हाई तो कभी ये ख्याल नहीं आता। इंसान बहुत खुदगर्ज़ होता है हमेशा अपने बारे में ही सोचता है पर क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम केवल अपने बारे में ना सोचकर सब के बारे में सोचे तो ये ज़िन्दगी सचमुच एक खुबसूरत ख्वाब बन जायेगी।
ख्वाब तो सभी देखते है कुछ ख्वाब सच होते है और कुछ भूल जाते है । अगर आप सच्चे दिल से कोई चीज़ की ख्वाहिश करो तो कहते है की वो चीज़ खुद आप तक पहुचने के रास्ते तलाश कर लेती है, पर कई बार हम खुद नहीं समझ पाते की सच क्या है और झूट क्या हम बस ख्वाबो की झूटी दुनिया में ही जीते रहते है जहाँ हर चीज़ खुबसूरत होती है परन्तु ज़िन्दगी कोई ख्वाब नहीं । अक्सर जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो हम सोचते है की ऐसा हमारे साथ ही क्यों हुआ पर जब हम खुश होते हाई तो कभी ये ख्याल नहीं आता। इंसान बहुत खुदगर्ज़ होता है हमेशा अपने बारे में ही सोचता है पर क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम केवल अपने बारे में ना सोचकर सब के बारे में सोचे तो ये ज़िन्दगी सचमुच एक खुबसूरत ख्वाब बन जायेगी।
सोमवार, 15 मार्च 2010
रविवार, 14 मार्च 2010
कुछ ख़ास
ख्वाहिशो के रास्तो में ख्वाबो की एक बस्ती है ,
धुंदली सी कही खोई खोई सी अपनी हस्ती है ।
ना छूना है चाँद न छूना है आफताब ,
जाना है उस मुकाम पे जहाँ किस्मत संवारती है ।
ऐसे रहा करो की करे लोग आरजू
ऐसा चलन चलो की ज़माना मिसाल दे।
किसी ख्वाब से कम ना थी जुस्तजू अपनी
एक बेवफा जहाँ में वफ़ा खोजते रहे ।
वो जिसको हम जान बैठे थे हमराज अपना
उसने तो हमको एक फ़साना बना दिया ।
झुकी झुकी पलकों में हज़ारो ख्वाब रवा होते है ,
बंद लफ्जों से भी अफ़साने बया होते है,
दिल से महसूस करने की ज़रूरत है बस
खुद जान जाओगे परवाने क्यों फना होते है।
धुंदली सी कही खोई खोई सी अपनी हस्ती है ।
ना छूना है चाँद न छूना है आफताब ,
जाना है उस मुकाम पे जहाँ किस्मत संवारती है ।
ऐसे रहा करो की करे लोग आरजू
ऐसा चलन चलो की ज़माना मिसाल दे।
किसी ख्वाब से कम ना थी जुस्तजू अपनी
एक बेवफा जहाँ में वफ़ा खोजते रहे ।
वो जिसको हम जान बैठे थे हमराज अपना
उसने तो हमको एक फ़साना बना दिया ।
झुकी झुकी पलकों में हज़ारो ख्वाब रवा होते है ,
बंद लफ्जों से भी अफ़साने बया होते है,
दिल से महसूस करने की ज़रूरत है बस
खुद जान जाओगे परवाने क्यों फना होते है।
शनिवार, 13 मार्च 2010
ज़िन्दगी कितनी अजीब है
कभी कभी मैसोचती हूँ की मेने कभी अपनी मर्ज़ी से कोई डिसीज़न नहीं लिया हमेशा कोई न कोई मुझे रोक देता है कभी तो खुद ही हिम्मत नहीं पड़ती पता नहीं शायद यही ज़िन्दगी है हम अपने लिए नहीं दूसरो के लिए जीते है पर हम को क्या अपनी ज़िन्दगी पर कोई हक नहीं होना चाहिए यहाँ तक की ज़िन्दगी का सबसे ख़ास फैसला भी घरवालो की मर्ज़ी से ही लेते है पर क्या हमको ये जानने का हक नहीं होना चाहिए की हमको जिस इंसान के साथ ज़िन्दगी गुजारनी हे वो क्या इस लायक है या नहीं क्या वो हमे समझ पायेगा शायद यही ज़िन्दगी है हर मोड़ पर एक नया इम्तिहान होता है हर मोड़ पर नई मंजिल होती है हमको बस चलते जाना होता है बाक़ी सब खुदा पर छोड़ देना चाहिए वो जो भी फैसला लेगा उसमे ज़रूर उसकी मर्जी होगी बस हर हाल में जीने की आदत होना चाहिए और खुद पर यकीन यही ज़िन्दगी जीने का सही रास्ता है ।
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
सिंधिया जी का आगमन हमारे ऑफिस में
९ मार्च २०१० को रात १० बजे के करीब हमारे माननीय सांसद श्री ज्योदिरादित्य सिंधिया जी हमारे ऑफिस में आये और हमारे ऑफिस में चल रहे कार्यो का निरीक्षण किया यहाँ चल रहे कार्यक्रमों को देखकर वो अत्यंत प्रसन्न हुए उन्होंने कहा की सभ्यता और तकनीक का ये संगम अद्भुत हे
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