रविवार, 15 सितंबर 2013

कन्या भ्रूण ह्त्या सही या गलत ?


  कन्या भ्रूण ह्त्या सही या गलत ??????????????


आज भी हमारे देश में लडकियों  होने से पहले ही मार दिया जाता हे सब कहते है की ये गलत है पर आज हमारे देश के जो हालात है दिन ब दिन बड़ते अपराध रेप अपहरण दहेज़ उत्पीडन  और घरेलु हिंसा और इनके चलते होने वाली आत्महत्याओ के मामलो को देख कर कभी मन के किसी कोने में ये ख्याल आता है की अगर पैदा होने के बाद एक नन्ही सी मासूम कलि को यही सब सहना है रोज़ रोज़ मरना है तो  दुनिया में ही क्यों लाये  माँ बाप तो डरेंगे ही की कही उनकी बेटी को भी किसी हादसे का शिकार ना होना पड़े उस पर ये समाज जहा आज भी बेटी को बोझ ही माना जाता है आज भी यही कहा जाता है की बेटी के माँ बाप है तो सर तो नीचा रखना ही पडेगा शर्मिन्दा भी होना पडेगा आखिर समाज में जो रहना है फिर तो यही सच है की बेटी तू दुनिया में आएगी तो मेरा सर और कंधे दोनों झुक जायेंगे इसलिए तू जन्म ना ले यही अच्छा है
सच हम आज भी अपनी मानसिकता को नहीं बदल पाए दुनिया चाँद के आगे निकल गई और हम ज़मीन पर चलना भी नहीं सीख पाते।  हम बात करते है की महिलाओ को हर जगह बराबरी का हक है अरे हम उन्हें साथ खड़ा देख कर बर्दाश्त नहीं कर पाते अगर किसी ऑफिस में लेडीज बॉस हो तो लोग पीठ पीछे मज़ाक उड़ाते है अगर लड़की को तरक्की मिले तो उसके काम को नहीं उसके चरित्र को आंकने लगते है ज़माना किस और जा रहा है कितनी तरक्की कर रहा है इसका सबूत हमारे राजनेता समय समय पे महिला विरोधी बयान देकर देते रहते है जब देश के रहनुमा ही देश की महिलाओ की इज्ज़त नहीं कर पाते तो हम आम नागरिको से क्या उम्मीद करे क्राइम रेट में शहर के पड़े लिखे युवा भी उतने ही  सक्रिय है जितने गाँव के अनपढ और जाहिल लोग फिर किस उन्नति की और बढ़ रहे है हम  आज भी जब कोई क्राइम होता है खूब हंगामा होता है सब युवा भीड़ लगाते है चिल्लाते है नारे लगाते है और फिर अगली गली में जाकर लडकियों पर फब्तिय कसते है
वर्ना क्यों आज इतने प्रचार प्रसार के बाद भी क्राइम रेट में कमी नहीं आ रही क्यों महिलाओ को लेकर हम आज भी घटिया सोच ही रखते है महा नगर हो या गाँव क्यों महिला हर जगह असुरक्षित है क्यों।?????????
तभी तो आज ये सवाल उठा की लडकियों को अगर यही सब सहना है अगर हम उन्हें एक इज्ज़त दार ज़िन्दगी नहीं दे सकते तो हमें क्या हक़ है उनको पैदा करके उन्हें इस नरक में झोंकने का। ………………।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

एक नई कोशिश।

मुकद्दर में किसके क्या लिखा है ये तो ऊपर वाला ही जानता है हम तो सिर्फ कोशिश ही कर सकते है पर जब सब कुछ किस्मत में पहले से ही लिखा है तो कोशिश क्या करे आखिर होना तो वही है जो मुकद्दर में लिखा है हम कोशिश करेंगे अपनी किस्मत बदलने की और जब हार जायेंगे तो कहेंगे की किस्मत का लिखा कोन बदल सकता है हाँ जब भी हम हारते है तो यही तो कहते है की ये तो मरी किस्मत ही खराब है मेने तो पूरी कोशिश की थी पर  सच कई बार हम देखते है की कई लोग जिनको कोई ज्ञान नहीं होता या बिना कोई योग्यता के कई ऊंची पोस्ट पे काम करते है और जो लोग ज्ञान वान है वो उनकी जीहुजूरी करते है कोई सारा दिनमेहनत  करके भी दो रोटी नहीं कमा पाता और कोई बिना कुछ किये ऐश करता है कई सवाल जिनके जवाब हम नहीं ढून्ढ पाते क्यों आखिर क्यों कुछ लोग मिटटी को हाथ लगाये तो वो सोना बन जाती है और कुछ लोग सोने को भी मिटटी में बदल देते है कई बार हम किसी का बुरा नहीं चाहते फिर भी किसी का दिल दुख देते है और कई बार जो हमे बार बार दुःख देते है उनको खुश करने के लिए खुद को भी मिटा देते है कई बार हमे पता होता है की ये रास्ता हमे कभी मंजिल पे नहीं ले जायेगा फिर भी हम उस पर चलते रहते है कभी मंजिल सामने होने पर भी उस तक नहीं पहुँच पाते कभी हम किसी को नहीं समझ पाते तो कभी कोई हमे हर इंसान अपने आप में उलझा हुआ है अपने सवालों के जवाब ढूँढता रहता है सारी ज़िन्दगी यूँही सवालों में कट जाती है क्यूंकि वक्त तो नहीं रुकता हम भले ही रुक जाये
काश कभी ऐसा हो की हम को हमारे सवालों के जवाब मिल जाये जब हम सुबह जागे तो हमको पता हो की आज कुछ बुरा नहीं होगा सब ठीक होगा आज कोई नई उलझन नहीं आएगी पर खैर ये तो पंडित और ज्ञानी भी नहीं बता सकते की अगले पल क्या होने वाला है  तो हम क्या जाने।  इसलिए सब कुछ मुकद्दर पे छोड़ के अपना काम करते रहने में ही भलाई है हम तो सिर्फ कोशिश ही कर सकते है न हर बार एक नई कोशिश।