शनिवार, 13 मार्च 2010

ज़िन्दगी कितनी अजीब है

कभी कभी मैसोचती हूँ की मेने कभी अपनी मर्ज़ी से कोई डिसीज़न नहीं लिया हमेशा कोई न कोई मुझे रोक देता है कभी तो खुद ही हिम्मत नहीं पड़ती पता नहीं शायद यही ज़िन्दगी है हम अपने लिए नहीं दूसरो के लिए जीते है पर हम को क्या अपनी ज़िन्दगी पर कोई हक नहीं होना चाहिए यहाँ तक की ज़िन्दगी का सबसे ख़ास फैसला भी घरवालो की मर्ज़ी से ही लेते है पर क्या हमको ये जानने का हक नहीं होना चाहिए की हमको जिस इंसान के साथ ज़िन्दगी गुजारनी हे वो क्या इस लायक है या नहीं क्या वो हमे समझ पायेगा शायद यही ज़िन्दगी है हर मोड़ पर एक नया इम्तिहान होता है हर मोड़ पर नई मंजिल होती है हमको बस चलते जाना होता है बाक़ी सब खुदा पर छोड़ देना चाहिए वो जो भी फैसला लेगा उसमे ज़रूर उसकी मर्जी होगी बस हर हाल में जीने की आदत होना चाहिए और खुद पर यकीन यही ज़िन्दगी जीने का सही रास्ता है ।

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