जो की अवरक्त किरणों के रूप में प्रथ्वी के तापमान को बढाने के लिए उत्तरदायी है। इसका मुख्य अवयव है कार्बोन डाई ओक्सईड, मीथेन , नाइट्रस ओक्सईड , जल भाप आदि है। इन गैसों के सबसे बड़े निर्माताओं में ताप विद्युत संयंत्र है , जो जीवाश्म ईंधन को जलाने और बड़ी मात्रा में इन गैसों का उत्पादन कर रहे हैं. इन ग्रीन हाउस गैसों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत सड़क पर चलने वाहन और अन्य उद्योगों से हैं।
इस बड़ते तापमान का ही नतीजा है की ध्रुवो पर बर्फ पिघल रहा है अगर यही हाल रहा तो डर है की किनारों पर स्तिथ देश जल्दी ही सागर में समा जायेंगे। ग्लोबल वार्मिंग ने जानवरों के साम्राज्य को भी प्रवाभित करना प्रारंभ कर दिया है कई प्रजातीय जो इस बदलते मौसम की मार सह सकने में अक्षम है लुप्त होती जा रही है। इस ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रणाम हमे मौसम चक्र के बिगड़े रूप में नज़र आ रहा है अब गर्मिया सर्दियों से अधिक लम्बी होती है ।बारिश का कोई समय पक्का नहीं है। बारिश में सूखा पड़ता है और सर्दी या गरमी के मौसम में बारिश तबाही मचा देती है। बड़ते तापमा ने कई नई बीमारियों को भी जन्म दे दिया है। इसका कारण यह है की बेक्टेरिया सर्दी की अपेक्षा गर्मी में तीव्रता से बड़ते है । आज किसान हमेशा डरे रहते है की पता नहीं कब इस बदलते मौसम की मार से उनकी फसल बर्बाद हो जाए। इस तरह कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो इस ग्लोबल वार्मिंग से परेशान न हो । पर अब सोचने और बाते करने या चिंता जताने से काम नहीं चलेगा क्यूँकी अगर वक़्त रहते इस समस्या को सम्भाला नहीं गया तो एक क़यामत आने से कोई नहीं रोक पायेगा और उस क़यामत के ज़िम्मेदार हम स्वयं ही होंगे ।