बुधवार, 7 अगस्त 2013

ज़िन्दगी का सफ़र

ज़िन्दगी का सफ़र



कभी वक़्त मिले तो सोचना की हमने अपनी ज़िन्दगी में कितना कुछ  कितना कुछ खोया
कभी किसी ने हमे धोका दिया तो कभी हमने किसी को धोका दिया कभी किसी ने हमसे झूठ बोला तो कभी हमने किसी से
बस ज़िन्दगी ऐसे ही गुज़र गई हम ने सारी ज़िन्दगी दूसरो को  दी पर कभी खुद को समझने की कोशिश नहीं की हम क्या चाहते है हमारी क्या ख्वाहिशे  है  कभी वक़्त ही नहीं मिला  सोचने का  कभी घर वालो की ख़ुशी के लिए तो कभी बच्चो की ख़ुशी के लिए कभी दोस्तों की ख़ुशी के लिए बस करते रहे सब
और फिर भी किसी को भी खुश नहीं कर पाए आज भी हर इंसान को शिकायत है सही है जो इंसान खुद खुश न हो वो दूसरो को खुश   सकता है पर हम जिस समाज में रहते है हमने वह हमेशा यही देखा है की हमारी माँ कभी भी अपनी ख़ुशी नहीं देखती वो सिर्फ बच्चो की ख़ुशी में खुश हो जाती है पापा  पहनते है ताकि बच्चो के नए कपड़ो के लिए पैसे बचा सके  हम भी कहीं ना कहीं उसी परवरिश का एक हिस्सा है ये हमारे संस्कार है जो हम को खुश होने से रोकते है पर हमे अपनों से जोड़ते है और हम दूसरो की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूँढने लगते है
और साड़ी ज़िन्दगी दूसरो को खुश करके खुश होते रहते है   यही है ज़िन्दगी का सफ़र
कहते है न
अपने लिए जिए तो क्या जिए 
ये दिल ये जा  के लिए 
 

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