आप लोग अगर चंदेरिया में जानना चाहते है तो www.chanderiyaan.chanderi.org पर जाकर पता है मैं इस पोस्ट सिर्फ अपने अनुभव अपने विचार लिख रही हूँ।
आज मैं चन्देरियां में अपने अनुभव को आप सब के साथ साझा कर रही हूँ ये मेने इस जगह २ साल काम किया और ये समय मेरी ज़िन्दगी का सबसे अच्छे अनुभब में से एक है बहुत कुछसीखा लोगो की सही पहचान करना सही वक़्त सही फैसला लेना परेशानियों में भी हिम्मत से काम लेना ज़िन्दगी का सही मतलसब यही आकर समझ आया
जब मैं पहली बार यहाँ आई थी तो मुझे ये भी नही पता था की ये क्या जगह है और यहाँ क्या होता है अपनी एक दोस्त के साथ बस वहा देखने गई थी वहा मेरी मुलाक़ात प्रोजेक्ट हेडशाहिद अहमद से हुई उन्होंने ही मुझे उस प्रोजेक्ट की सही जानकारी दी तब मुझे भी यह एहसास हुआ की ये केवल एक कदम नहीं बल्कि लोगो को नए रस्ते की और ले जाने की पहल है एक ऐसी पहल जोआगे चलके इस जगह की किस्मत बदल देगा
हमने जब काम शुरुआत की तब लोग इस जगह को अजूबे की तरह देखते थे। बच्चे सीखने आते पर वो इस काम संजीदगी नहीं लेते। फिर जैसे की हम भारतीयों का स्वाभाव है की हम परिवर्तन बर्दाश्त नहीं कर पाते यहाँ भी हमे विरोध का सामना करना पड़ा लोगो को लगा की कंप्यूटर के उपयोग से हाथ से डिजाईन बनाने की सदियो पुरानी परंपरा खतरे में पड़ जाएगी।
मुझे याद है की मेरी क्लास में १० कंप्यूटर थे और एक बैच में २०-२५ छात्र होते थे सुबह ९ बजे शाम ५ बजे तक लगातार। हर उम्र के ५ साल से लेकर ५० साल तक के और अनपढ़ से लेकर ग्रेजुएट
और सभी शिकायत करते की उनको पूरा पूरा वक़्त नही मिल रहा। शायद ये हम सबका स्वभाव ही है की हम सदा ज़्यादा की चाह रखते है। एक बार छात्रों ने विरोध प्रदर्शन भी किया कोई बच्चा क्लास में नहीं आया और कुछ नेता बने छात्रों ने धमकी भी दे डाली की वे सिंधिया जी से शिकायत कर देंगे . हर सप्ताह कोई न कोई जांच दल आ जाता था। ये देखने की कही सरकारी पैसे का दुरूपयोग नहीं हो रहा।
ऊपर से बिजली की समस्या दिन में कई कई घंटे बिजली गुल रहती। इन्वर्टर भी काम नहीं कर पाते। मई जून की वो जानलेवा गर्मी। पर हमारे प्रोजेक्ट डायरेक्टर शाहिद सर हर बार समस्या का समाधान ढून्ढ लेते और हम लोगो की हिम्मत भी बढ़ाते रहते। साथ ही सौम्य सर जो इतनी विषम परिस्तिथियों में भी दिल्ली को छोड़ यहाँ रहकर हमारा साथ देते रहे।
फिर कुछ समय बाद हमारे यहाँ चंदेरी साडी की डिजाईन के लिए नया सॉफ्टवेयर आया जिसकी मदद से
नई नई डिजाईन बनाना आसान हो गया। कुछ चयनित व्यक्तियों को उसकी ट्रेनिंग के लिए मुम्बई भेजा गया फिर ऑनलाइन ट्रेनिंग की मदद से उनको उस काम में महारत हासिल। और जो डिजाईन बनने में पहले हफ़्तों लग जाते थे वो अब ही पलो में बन जाती। साथ ही पुराने डिजाईन डिजिटाइज़ भी किया जा सकता था।
पहले लोगो को समझ नहीं आया फिर एक ऐसी विवादित डिजाईन आई जिसने अचानक ही चंदेरी साडी को चरचा में ला दिया। मौक़ा था कामनवेल्थ गेम्स का और उसके लोगो वाला स्टोल जो सभी खिलाड़ियों को दिए जाने वाले थे उनकी डिजाइनिंग का।
मैंने इस सन्दर्भ में एक शब्द विवादित उपयोग किया है क्योंकि उस दुपट्टे का लोगो डिजाईन करने का प्रोजेक्ट हमारी संस्था को नहीं बल्कि हस्तशिल्प विकासनिगम को मिला था। पर वहा के डिज़ाइनर ने हमारी संस्था के एक ट्रेनी फुरकान मदद ले कर डिजाईन हमारे अधिकृत सॉफ्टवेयर से बनवा लिया।
पर मुझे ये बात ठीक नहीं लगी और मेने सर को बात बताई बस फिर क्या था विवाद हुआ की बस
और आखिर फुरकान को उसकी मेहनत फल मिला और क्रेडिट भी। और आज भी वो संस्था का स्टार डिज़ाइनर है।